बेलसंड में बागमती नदी के बाएं तटबंधों के टूटने के कारण जलप्रलय का दंश तो सबों ने झेला।लेकिन ओलीपुर गांव के लगभग एक दर्जन परिवार एक माह बाद भी बाढ़ की त्रासदी को झेल रहे हैं।इनमें से भगीरथ सहनी,मेही सहनी,मेघनाथ पटेल और हारूनी सहनी का घर पानी की बेगवती धारा में बह गया।ये तीनों परिवार घर के सामने गांव के मुख्य सड़क के किनारे प्लास्टिक का तिरपाल टांग कर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।पानी सूखने के बाद मेघनाथ पटेल अपने घर की जमीन पर झोपड़ी खड़ा करना शुरू कर दिए हैं।
बागमती नदी के बांध पर प्रभु सहनी,सुरेंद्र सहनी, बतहू सहनी समेत कुछ परिवार अबतक टीके हुए हैं।छठ और दीपावली को लेकर विस्थापित परिवार पानी को उलिचकर जैसे तैसे अपना आश्रय बनाकर उसकी लिपाई पुताई में लगे हैं। बाढ़ ने इन सबों का सबकुछ लिल लिया।वे लोग जान बचाने के लिए आनन फानन में तटबंध पर चले गए।इनके पास पहने हुए कपड़ों को छोड़कर कुछ भी नहीं बचा। बाढ़ राहत के रूप में मिले सात हजार रुपए के अनुदान से किसी तरह घर की मरम्मत कर रहे हैं।कृषक भी जीविकोपार्जन के लिए मजदूरी करने को विवश हैं।सरकार से मिले प्लास्टिक के तिरपाल भी पर्याप्त नहीं हैं।प्राकृतिक आपदा ने इन्हें तोड़कर रख दिया है।बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। खेतीबाड़ी भी नष्ट हो चुकी है।सामुदायिक रसोई भी बंद कर दिया गया है। गांव के प्रभुसहनी बताते हैं कि बाढ़ के दौरान लगभग दस दिनों तक सामूहिक रसोई चला।उसके बाद से वह भी बंद है। जीविकोपार्जन के लिए पलायन उनकी मजबूरी बन गई है।